Friday, January 11, 2008

अमेरीकी जनता और चुनावी चुनौती

अमेरीका के सदर का चुनाव होने वाला हैं संसार की आँखे चुनाव पर हैं एक तरफ दोस्त और दुश्मन कयास लगा रहे की आने वाले समय मे अमेरीका की जनता उनके मन के अनुकूल ही फैसला करेगी दूसरी ओर अमेरीका के मतदाता पेशोपश मे हैं उनके सामने २००८ के चुनाव ने चयन को लेकर भारी चुनौती हैं अमेरीका का अगला प्रधान जो भी बने वह सवाल अपनी जगह हैं , पर अमेरीका की जनता का अगुवा होने के नाते वह जो भी करेगा उसकी जबाबदेही वहा की जनता पर ही होगी , और इसी बात को लेकर मतदाताओ को खासी परेशानी से दो -चार होना हैं , उनके सामने देश के अंदर और बाहर के हालात से सबन्धित कई अहम सवाल हैं ? आज अमेरीका जिस मुकाम पर हैं उसे कोई भी देशवासी खोना नही चाहेगा ? और यही सवाल मतदाताओ का सबसे बडा संकट हैं कि , अमेरीका का दबदबा दुनिया मे बनाए रखने के लिए किसे तख्त पर बैठाया जाए ? और वह कौन हो सकता हैं , जो अमेरीकी दबदबे को बरकरार रखने के साथ -साथ देश को और आगे ले जा सके ? अमेरीका की नौकरशाही का बेहद मजबूत ढाचा होने के बाबजूद जनता की अपनी अलग मनोदशा हैं - जिसका कारण , उसकी वजह धरेलू समस्याए कम औरबाहरी वजहे जयादा हैं -" जो हल हैं वही समस्या का जनक भी हैं " एक ओर युद्ध की ललकार हैं दूसरी ओर शान्ति अपना हक मांग रही हैं . आगे जाते हैं तो मानवता सवाल करेगी और पीछे हटते हैं तो मर्यादा धटती हैं . कारोबारी संबंध मजबूती से बना रहे हैं इसके लिए युद्ध और अमन दोनो की जरूरत हैं पर इन दोनो तलवारों को एक म्यान मे रखना भी कोई खेल- तमाशा नही हैं और यही दोहराव परेशानी का सबब हैं ।
धरेलू मोर्चे पर धन का फलसफा , डालर मे उतार -चढाव , तरक्की की धीमी चाल , सियासी मोर्चे पर नैतिकता और मानवता के सवाल ,चुनाव के मौक़े पर उठा नर- नारी समता पर बवाल , रंगत का अंतर और युद्ध और शान्ति के बीच रस्सा -कस्सी , और ढेरों सवालो के बीच मतदाता के अंतर मन की बेचैनी और अपने वतन को संसार का मुकुट बनाने की तमन्ना-" तकदीर के साथ तदबीर का खेल बन कर रह गई हैं".
बहुत कम चुनावों ने इस तरह की चुनौती जनता के सामने पेश की ,जो भी हो . २००८ का चुनाव संसार का सबसे मुश्किल चुनाव होने के बाबजूद भी अमेरीकी जनता हमेशा की तरह सही फैसला लेगी इसका यकीन सभी को हैं . और नया चुनाव अमेरीका को नयी बुलंदी की ओर ले जाने मे कामयाब रहेगा .